Tuesday 19 March 2013

ठूंठ बनकर खड़ा हूँ


1
वो
हममें तलाशा रहे थे
प्यार का समंदर
और
खुद मरुस्थल बन भटकते थे
2
भोगवादी
भोगतंत्र के खिलाफ़
लोकवादी
लोकतंत्र के पक्ष में खड़े हों …!
3
लड़ो !
लोहा लाल है
कि
अभी लड़ो
कि
लड़ने से ही मिलेगी मुक्ति
माला जपने से नहीं…
4
ख़्वाब
में करवट बदले
नींद
खुली
और
सपने टूट गये
5
तुम्हारा
वहीँ एक
लफ्ज़
दिल के लिए संजीवनी है 
जिसे
बार-बार सुनने को
मन रहता है आतुर
करता है प्रतीक्षा
अगली बार का
6
…भाग एक…
समाज
में दो तरह का खूंटा गाड़ने का प्रचलन है
एक पुरुष गड़ता है
कि
स्त्री उसके परिधि से
दूसरी परिधि में न जा सके
दूसरा खूंटा
पत्नी गड़ती
कि
उसका
पगहा तोड़ाकर
दूसरे का खेत न नुकसान कर दे
7
…भाग दो…
एक तीसरा खूंटा भी है
जो हमेशा खाली रहता है
न पुरुष स्त्री को बंधता है
न स्त्री पुरुष को
बांधने की स्थिति में
दोनों
एक दूसरे का खूंटा,पगहा सहित उखाड़ कर भाग जाते हैं…
भारत में यह खूंटा,पश्चिम से आयातीत
8
मन
कर रहा है
एक मंदिर बनाऊं
और
वहां सिर्फ लोकतंत्र का कीर्तन कराऊं
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हमारा 
लोक तंत्र हमारा
भईया लोकतंत्र हमारा…
हे
हाँ
लोकतंत्र हमारा …
भईया लोकतंत्र हमारा ….
एक बार जोर से
भारतीय गण बोलो
इंडियन लोकतंत्र की जय ………………….
9
तुम 
अमरबेल की तरह
दाखिल हुई
हमारे जीवन में
और
निरंतर फैलती गयी
फैलती ही गयी
और
मैं
सिकुड़ता मुरझाता सूखता गया
और
अब
ठूंठ बनकर
खड़ा हूँ
लोग लगावन के लिए
ले जाते हैं
हमारी डालियों को
तोड़कर
……………………….फ़िलहाल……..
19/03/2013/07:30.

2 comments:

Reena Pant said...

wah.....

India Support said...

बहुत अच्छा लेख है Movie4me you share a useful information.