Sunday 10 March 2013

जहाँ-जहाँ ठहरे थे

साहित्य में
सोना
खोना
और
पाना
फिर
निरंतर पाते ही जाना
पाते ही जाना
और
अंत में
जब
सब कुछ हासिल कर लेना
तब
जिंदगी की साँझ बेला में बैठकर
रोना
और सोचना
कि
पाने के पड़ाव पर
जहाँ-जहाँ ठहरे थे
उस वक्त पर हाथ फेरना
और
सहलाना
याद करना
कि
ऊंचाई की चढ़ाई में
पढ़ाई की अपेक्षा
शरीर का कितना निर्णायक योगदान था …

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