Sunday 23 December 2012



 महिलाओं और मीडिया की आज़ादी पर बर्बर हमला

   






 

पुलिस ने सबसे पहले अपना लक्ष्य मीडियाकर्मियों और उनके कैमरों को निशाना बनाया.उन पर वाटर कैनन से पानी का बौछार किया और उनकी तरफ आंसू गैस के गोले फेंके.जब उनको इस बात की तसल्ली हो गई कि पुलिस कार्रवाई की अब लाइव कवरेज नहीं हो सकती. ठीक इसी वक्त आन्दोलनकारियों पर हमला शुरू कर दिया



रमेश यादव / dryindia@gmail.com
23 दिसंबर,2012.नई दिल्ली.
अनियंत्रित भीड़ को,नियंत्रित करने में दिल्ली पुलिस खुद अनियंत्रित हो जाती है,शांतिपूर्ण धरने पर बैठे आन्दोलनकारियों पर पीछे से हमला करती है.रामलीला मैदान से लगायत इण्डिया गेट तक इस बात का गवाह है.   
आज शाम दिल्ली पुलिस ने जिस तत्परता से निहत्थे आन्दोलनकारियों पर आंसू गैस,वाटर कैनन और लाठी से हमला किया,यह एक बारगी पुलिस नहीं,सरकार की रणनीति मालूम पड़ती है.
पुलिस ने सबसे पहले अपना लक्ष्य मीडियाकर्मियों और उनके कैमरों को निशाना बनाया.उन पर वाटर कैनन से पानी का बौछार किया और उनकी तरफ आंसू गैस के गोले फेंके.जब उनको इस बात की तसल्ली हो गई कि पुलिस कार्रवाई की अब लाइव कवरेज नहीं हो सकती.
ठीक इसी वक्त आन्दोलनकारियों पर हमला शुरू कर दिया.इस बीच कुछ मीडिया  

कर्मी भी इसकी चपेट में आये. निरंकुशता और सरकारी बर्बरता का प्रमाण तो 

देखिये.पुलिस ने आन्दोलनकारियों को न चेतावनी दी और न ही कोई सूचना.

अचानक पीछे से हमला किया.इतनी बड़ी संख्या में मौजूद युवतियों के बावजूद पूरी 

कार्रवाई में महिला पुलिस कर्मियों की भागीदारी नगण्य थी.      

मीडिया पूरे आंदोलन और आक्रोश को जिस अंदाज़ में कवरेज दे रहा था और लोगों की हुजूम बढ़ती जा रही थी,सरकार चिंतित हो गई थी.
एक क्षण के लिए मान लेतें हैं कि आज शाम इंडिया गेट पर युवाओं का एक समूह पुलिस के हस्तक्षेप से अचानक आक्रामक हो गया,लेकिन अमर जवान ज्योंति के पास शांतिपूर्ण तरीके से बैठे आंदोलनकारियों पर पीछे से हमले को किस रूप में लिया जाये...?         
दिल्ली पुलिस ने कल और आज जो रुख अख्तियार किया,वह मौजूदा सल्तनत की 

बर्बरता,खूंखार,निरंकुश,निर्मम,बदहवास, बदमिजाज़, असभ्य,अनियंत्रित, असंयमित

अमर्यादित आचरण का प्रतीक है.

तस्वीरों में देखिये तो एक-एक युवतियों पर लक्ष्य करके लाठी मारते हुए,पुलिस के 

चेहरे,उनके विजयी भाव को प्रदर्शित करते हैं और उनके पीछे से ललकारते अन्य 

पुलिस वालों की मर्दानगी साफ झलकती है.

अपराधियों के आगे दुम हिलाने वाली दिल्ली पुलिस, आन्दोलनकारियों पर कितनी 

बहादुरी से लाठी बरसायी...

रात-दिन चुंगी वसूली में मस्त और घटनाओं के वक्त अकसर लुका-छिपी का खेल 

खेलने में माहिर,दिल्ली पुलिस के इस करतूत को देखिये.निहत्थे छात्र-छात्राओं पर 

लाठी भांजने में कितनी प्रशिक्षित और सक्रिय दिखती है.

अपराधियों को देखकर माद में घूस जाने,पेड़ों के पीछे छुपकर दूरबीन विधि से 

शिकार कर चालान काटने का दबाव बनाकर जेब काटने वाली,दिल्ली पुलिस की सारी 

खूबी,लाठी में दिखती है.

आखिर आज अचानक आन्दोलनकारी,सरकार के लिए कितना खतरनाक हो गए 

थे.जबकि कल तक गृहमंत्री बहुत ही उदार भाव से बयान दे रहे थे.रात में खुद 

कांग्रेस अध्यक्ष भी आन्दोलनकारियों से मिलीं थीं और सुबह मिलने का वादा भी कर 

गयीं थीं.     

यह हमला,पूरी आजादी पर हमला है.इस देश के युवाओं पर हमला है.

देश पर हमला है.राजपथ पर हमला है.विजय पथ पर हमला है.जनपथ पर हमला है.लोकतंत्र पर हमला है.जनतंत्र पर हमला है.

अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है.मीडिया पर हमला है.युवतियों पर हमला है.छात्रों 

पर हमला है.छात्राओं पर हमला है.आन्दोलन पर हमला है.अहिंसा पर हमला है.

गाँधी दर्शन पर हमला है. निहत्थों पर हमला है.यह हमला,पूरी आजादी पर हमला 

है.यह बर्बरता का हमला है.यह निरंकुशता का हमला है.यह राजसत्ता का हमला 

है.यह सरकारी मशीनरी का हमला है.यह सरकार का हमला है.यह हमला,हम सब पर 

हमला है. 

अब उठने की जरुरत है.जागने का वक्त है.राजनैतिक व्यवस्था पर छाये कुहांसे को 

चीरने की जरुरत है.

देश के नौजवानों.निर्मम,निरंकुश,जनविरोधी,हत्यारी सत्ता को बदलने की आवश्यकता है.

खुद को बदलिए.देश को बदलिए.समाज को बदलिए.पुलिस को बदलिए.न्याय व्यवस्था 

को बदलिए.राजनीति को बदलिए. बराबरी का समाज गढ़ने कि जरुरत है.

ऐसा समाज बनाने का समय है,जिसमें स्त्री-पुरुष बराबरी से रहें.जहाँ बेटी-बेटे में 

भेदभाव के लिए कोई जगह न हो.

देश के नौजवानों यह देश आपका है.इस सुनहरे देश को अपने सपनों का देश 

बनाइये.इसे किसी राजनैतिक दल के भरोसे मत छोड़िये.

यह मुल्क किसी एक परिवार की जागीर नहीं है.किसी एक/खास वर्ग का चरागाह नहीं है.
यह देश सबका है.हम सबका.इसे बचाइए.हिंसा से नहीं,अहिंसा से.   

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