भावना फ़िनिक्स पक्षी,दिल भोर का तारा
एक
दिल
कभी-कभी
तुम्हारी
ना उम्मीदी से भी
सुर्ख हो जाता है
जैसे
चेहरा
सर्द हवाओं से
सुख जाता है
दो
तुम
शब्दों के भाव और घाव
को समझते हो
यहीं
हमारी विजय और
तुम्हारी हार है ...
तीन
तुम्हारा
दिल
भोर का तारा है
जब भी याद सताया है
भोर में ही
जगाया है...
आजकल आसमान में बादल छाया है
तभी तो अपना पराया है...
चार
हमारी संवेदना
कुश* की तरह है
आग से सिंचित होकर
हरियाली ग्रहण करती है...
पांच
हमारी भावना
फ़िनिक्स पक्षी की तरह होती है
आग में झुलसकर भी
जी उठती है...
छः
'वादा' हमेशा 'ऊंट' की तरह होता
है...
लोटे की तरह भी कह सकते हैं...
सात
उम्मीद
दीपक की तरह होती है
जलकर भी
इंतज़ार करती है...
रमेश यादव/ सभी कवितायेँ 17 दिसंबर,2012
नोट: 'कुश' एक तरह का घास/पौधा होता है,जिसे खत्म करने
के लिए लोग आग लगा देते हैं,बावजूद इसके,वह पुनः हरा-भरा
हो जाता है.लोग इसका प्रयोग छप्पर/मड़ई छाने के लिए भी करते हैं...
2 comments:
सुंदर क्षणिकाएं...।भावनाएं कभी नहीं मरतीं ।
छोटे-छोटे शब्दों में प्रेम की गहरी परिभाषाएं समाहित हैं.भावनाओं के सारे सागर हिलोर मार रहे हैं...
सादर..!
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