Saturday 29 December 2012

अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक जाँच की मांग !



अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक जाँच की मांग !


रमेश यादव /dryindia@gmail.com
30 दिसंबर,2012.नई दिल्ली.

16 दिसंबर,2012 की रात,दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार की शिकार 23 वर्षीया युवती.आख़िरकार 29 

दिसंबर,2012 को जीवन से जंग लड़ते-लड़ते सिंगापुर में मौत से हार गयी,जिसका नाम सिर्फ दिल्ली 

पुलिस और सरकार जानती है,बावजूद इसके पीड़िता के मौत पर हम सवाल उठा रहे हैं.अंतर्राष्ट्रीय स्तर 

पर महिला अधिकार,आजादी और न्याय के लिए कार्यरत संस्थाओं से जबाब मांगते हुए,इस पूरे प्रकरण की 

निम्नलिखित बिंदुओं पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक जाँच की मांग करते हैं...


1. पीड़िता युवती जब अस्पताल पहुंची,किस हालत में थी...?
2. प्राथमिक उपचार में कौन-कौन सी दवा दी गयी और मेडिकल जाँच की गयी.जरुरत क्या थी,किया क्या गया...?  
3. इण्डिया (भारतीय नहीं) के डाक्टरों ने उसके कितने आपरेशन किये गये और क्यों..?  
4. किस अवस्था में पीड़िता ने जूस पीया,टहली और बयान दर्ज करायी.क्या वह इस अवस्था में थी...?  
5. इण्डिया के डाक्टरों को कब अहसास हुआ कि पीड़िता का इलाज दिल्ली/इंडिया में संभव नहीं है...?
6. सिंगापुर में इलाज के लिए भेजने का फैसला किसका था...? डाक्टरों का या सरकार का.इस फैसले में कौन-कौन लोग शामिल थे.उस समय पीड़िता की हालत कैसी थी 
7. क्या पीड़िता एयर एम्बुलेंस से सिंगापुर ले जाने की स्थिति में थी...? उस वक्त उसकी पल्स रेट और बीपी कितनी थी...?     
8. दिल्ली-सिंगापुर के बीच और हवाई अड्डे पर उतरते समय पीड़िता किस स्थिति में थी...?  
9. दिल्ली और सिंगापुर में जारी की गयी मेडिकल बुलेटिन कितनी सत्य और तथ्यपरक थीं...?       
10. पीड़िता के जिस अंग के उपचार के लिए सिंगापुर के माउंट एलिज़ाबेथ अस्पताल में ले जाया गया था,क्या वह पूरी दुनिया में सम्बंधित उपचार के लिए एक मात्र विकल्प था या उससे बेहतर अस्पताल भी हैं..? क्या उक्त अस्पताल का चयन सही था...?       
11क्या इस पूरे प्रकरण में डाक्टरों की टीम,दिल्ली और केंद्र सरकार के दबाव में काम कर रही थी. इनका फैसला और भूमिका,पीड़िता के लिए कितनी जीवन रक्षक और न्याय पूर्ण थी...?

नोट: अंतर्राष्ट्रीय जाँच की माँग इसलिए की जा रही है,क्योंकि पीड़िता के इलाज में दिल्ली (इण्डिया) और सिंगापुर दोनों शामिल रहे हैं.       


Wednesday 26 December 2012




पुलिस ने लिखी कहानी,मीडिया में हुआ प्रसारित


रमेश यादव /dryindia@gmail.com

26 दिसंबर,2012.नई दिल्ली.

कभी-कभी इसका राग़ विज्ञापन न मिलने तक क्रान्ति और जैसे ही विज्ञापन का जुगाड़ हो जाये फिर मरघट सरीखा शांति.मौजूदा मीडिया के इस लक्षण को आम जनता जान परख रही है.



करीब दस दिनों में राष्ट्रीय मीडिया का चेहरा,दस किस्म का देखने को मिला है.कभी यह दिल्ली पुलिस की लिखी कहानी के आगे-पीछे घूमता है.कभी बलात्कारियों को सजा दिलाने वाले समूह के आगे खड़ा हो जाता है.कभी सरकार के हाँ में हाँ मिलाता है तो कभी खुद के द्वारा खिंची गयी,लकीर को मिटाता और फिर उसी जगह नयी लकीर खींचता नज़र आ रहा है.

इसका मूल संकट है कि यह खुद के भरोसे जमीनी स्तर पर खोजी निगाह नहीं रखता.इसकी विश्लेष्णात्मक क्षमता पैनी नहीं है.पुलिस और सरकार के बयानबाजी पर इसकी दुकान चल रही है.इसी वजह से इसके ऊपर कई किस्म के गंभीर आरोप लग रहे हैं.

कभी-कभी इसका राग़ विज्ञापन न मिलने तक क्रान्ति और जैसे ही विज्ञापन का जुगाड़ हो जाये फिर मरघट सरीखा शांति.मौजूदा मीडिया के इस लक्षण को आम 
जनता जान परख रही है.             

इधर के दो दशकों के दरम्यां एक खास वर्ग पैदा हुआ है,जिसका जल,जंगल, जमीन,जीवन संघर्ष,इज्जत,आज़ादी और न्याय से जुड़े जन आंदोलनों से बहुत गहरा और संवेदनशील सरोकार नहीं दिखता.

संघर्ष की भट्ठी से तपकर निकले हुए जमात और हाशिये के जमात से भी इसका बहुत जीवंत रिश्ता नहीं रहा है.ये कुछ ख़ास वजहें हैं,जो इन्हें मौलिक रूप से बहुसंख्यक समाज के दर्द और पीड़ा की समझ से अलग करती हैं.यहीं कारण है कि इन्हें कई गम्भीर मसलों को समझने में दिक्कत होती है.इनका यह कदम समस्याओं को सुलझाने की जगह उलझाने में मददगार साबित होता है.

कभी-कभी इस बर्ग का राजसत्ता के साथ गहरा गठजोड़ भी सामने आता है. बावजूद इसके यह वर्ग राजनीति,समाज और अर्थनीति को गहराई तक प्रभावित कर रहा है.
यह वह वर्ग है जो आक्रोश और आतंकवाद,विरोध और विद्रोह,आन्दोलन और 

जनांदोलन,अन्याय और अराजकता,धरना और दंगा,हिंसा और अहिंसा,प्रतिरोध और प्रदर्शन में जमीनी फर्क नहीं कर पाता है.यहीं घालमेल आन्दोलन की आत्मा को मरने में सहायक की भूमिका अदा करती है.

इस तरह के लोगों की घुसपैठ सभी जगहों पर है.सरकारी मशीनरी से लागायत मीडिया तक में.यहीं कारण है कि आन्दोलन,जनसंघर्ष और राजनैतिक आन्दोलनों की रिपोर्टिंग करते समय रिपोर्टर,सत्ता-पुलिस की भाषा बोलने लगते हैं.

ऐसे मसलों पर जन की आवाज़ नगण्य हो जाती है या दबा दी जाती है या  फिर कोई न कोई हथकंडा अपनाकर राजसत्ता की पुलिस मशीनरी के जरिये जनभावना को रौंद देती है.कभी-कभी आन्दोलनों का दमन भी इसी रास्ते होता है.    

इण्डिया गेट पर आन्दोलनकारियों और मीडियाकर्मियों पर बर्बर लाठीचार्ज की रिपोर्टिंग करते वक्त कुछ चैनल्स न्यूज चलाये "आन्दोलनकारियों/प्रदर्शनकारियों के बीच दंगाई घूस आये थे,इसलिए मजबूरन भीड़ को हटाने के लिए पुलिस को लाठी का सहारा लेना पड़ा.

सर्वाधिक मीडिया कर्मियों के चोटिल होने के बावजूद किस दबाव में इस तरह का समाचार प्रसारित-प्रचारित किया गया,बताना मुश्किल है,लेकिन इस तरह की खबरें आन्दोलनकारियों की जगह,दिल्ली पुलिस और सरकार के लिए मददगार साबित हुईं.इसी समाचार की मजबूती के सहारे दिल्ली पुलिस अपने बचाव में उतर सकी और अब फंसती भी नज़र आ रही है.  

इण्डिया गेट से टीवी चैनल्स के लिए जो रिपोर्टर,रिपोर्ट कर रहे थे,उन्हें पुलिस ने पहले अपना लक्ष्य बनाया.उनके कैमरों कर वाटर कैनन से पानी फेंका.रिपोर्टरों के तरफ आंसूं गैस के गोले फेंके गये.

इसकी वजह से लाइव रिपोर्ट करने में,उन्हें खासा परेशानी भी हुई.कुछ रिपोर्टरों पर लाठी भी भांजी गयी.मीडिया में जो रिपोर्टें आयीं हैं,वह घटना के हकीकत को बयां करने की बजाय,कई तरह का संदेह पैदा करती हैं.

एसडीएम उषा चतुर्वेदी और दिल्ली पुलिस के बीच का अंतर्विरोध.दिल्ली पुलिस और गृह मंत्री की साठ-गांठ.दिल्ली की मुख्यमंत्री और दिल्ली पुलिस के बीच  मतभेद और तालमेल का आभाव.

दिवंगत कांस्टेबल सुभाष तोमर के बारे में दिल्ली,पुलिस कमिश्नर का अधिकारिक बयान और पत्रकारिता के छात्र योगेन्द्र का खुलासा.कांस्टेबल सुभाष तोमर की मेडिकल रिपोर्ट.आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी.यह सब एक बारगी दिल्ली पुलिस द्वारा लिखी गयी कहानी लगती है,जिसे आधार बनाकर मीडिया द्वारा प्रसारित किया गया.

योगेन्द्र के खुलासे और कांस्टेबल सुभाष तोमर की मेडिकल रिपोर्ट और एसडीएम उषा चतुर्वेदी द्वारा पुलिस अधिकारीयों के अनावश्यक हस्तक्षेप को लेकर दिया गया बयान.अपने में कई रहस्य समेटे हुए है.यह बहुत बारीक़ और निष्पक्ष उच्च स्तरीय जाँच की मांग करती है.   

बलात्कारियों को शीघ्र,पुख्ता और जल्दी सजा देने के लिए स्वतः स्फूर्त इस आन्दोलन को,कांस्टेबल सुभाष तोमर की मृत्यु ने न केवल झकझोरा है,बल्कि आहत भी किया है.कभी भी किसी भी आंदोलन का लक्ष्य हिंसा नहीं होता,लेकिन अकसर पुलिस का हस्तक्षेप कई बार,उसे हिंसक रूप धारण करने के लिए उकसा देता है.     

आख़िरकार एक अप्रिय घटना ने एक गंभीर न्याय की मांग के लिए उठी आवाज़ को बंद करने में पुलिस के लिए मददगार साबित हुई.आन्दोलन के शुरुआती दिनों में अच्छी भूमिका के बावजूद घटना के दिन और बाद में मीडिया की भूमिका ने आन्दोलनकारियों के प्रति नकारात्मक माहौल बनाने में मददगार साबित हुई.    

आमतौर पर देखा गया है कि वामपंथी पार्टियों द्वारा संचालित आन्दोलनों की रिपोर्टिंग करते समय अक्सर मीडिया संस्थान पार्टियों के नाम भूल जाते हैं या   समझ के अभाव में किसी दूसरी पार्टी का नाम लिख देते हैं.मसलन,आन्दोलन CPI (ML) के लोग करते हैं,खबरें CPI के नाम पर प्रकाशित होती हैं और जब CPI के लोग करते हैं तो CPM के नाम से.यह गलती पार्टियों के बारे में व्यापक समझ न होने की वजह से होती है.

यदि सही मायने में मीडिया अपने आपको समाज का चौथा खम्भा होने का दावा करता है तो आन्दोलनों की गंभीरता को समझना बहुत जरुरी है.यही समझ जनता में उसके प्रति विश्वाश का कारण भी बन सकता है.     
       

Sunday 23 December 2012



 महिलाओं और मीडिया की आज़ादी पर बर्बर हमला

   






 

पुलिस ने सबसे पहले अपना लक्ष्य मीडियाकर्मियों और उनके कैमरों को निशाना बनाया.उन पर वाटर कैनन से पानी का बौछार किया और उनकी तरफ आंसू गैस के गोले फेंके.जब उनको इस बात की तसल्ली हो गई कि पुलिस कार्रवाई की अब लाइव कवरेज नहीं हो सकती. ठीक इसी वक्त आन्दोलनकारियों पर हमला शुरू कर दिया



रमेश यादव / dryindia@gmail.com
23 दिसंबर,2012.नई दिल्ली.
अनियंत्रित भीड़ को,नियंत्रित करने में दिल्ली पुलिस खुद अनियंत्रित हो जाती है,शांतिपूर्ण धरने पर बैठे आन्दोलनकारियों पर पीछे से हमला करती है.रामलीला मैदान से लगायत इण्डिया गेट तक इस बात का गवाह है.   
आज शाम दिल्ली पुलिस ने जिस तत्परता से निहत्थे आन्दोलनकारियों पर आंसू गैस,वाटर कैनन और लाठी से हमला किया,यह एक बारगी पुलिस नहीं,सरकार की रणनीति मालूम पड़ती है.
पुलिस ने सबसे पहले अपना लक्ष्य मीडियाकर्मियों और उनके कैमरों को निशाना बनाया.उन पर वाटर कैनन से पानी का बौछार किया और उनकी तरफ आंसू गैस के गोले फेंके.जब उनको इस बात की तसल्ली हो गई कि पुलिस कार्रवाई की अब लाइव कवरेज नहीं हो सकती.
ठीक इसी वक्त आन्दोलनकारियों पर हमला शुरू कर दिया.इस बीच कुछ मीडिया  

कर्मी भी इसकी चपेट में आये. निरंकुशता और सरकारी बर्बरता का प्रमाण तो 

देखिये.पुलिस ने आन्दोलनकारियों को न चेतावनी दी और न ही कोई सूचना.

अचानक पीछे से हमला किया.इतनी बड़ी संख्या में मौजूद युवतियों के बावजूद पूरी 

कार्रवाई में महिला पुलिस कर्मियों की भागीदारी नगण्य थी.      

मीडिया पूरे आंदोलन और आक्रोश को जिस अंदाज़ में कवरेज दे रहा था और लोगों की हुजूम बढ़ती जा रही थी,सरकार चिंतित हो गई थी.
एक क्षण के लिए मान लेतें हैं कि आज शाम इंडिया गेट पर युवाओं का एक समूह पुलिस के हस्तक्षेप से अचानक आक्रामक हो गया,लेकिन अमर जवान ज्योंति के पास शांतिपूर्ण तरीके से बैठे आंदोलनकारियों पर पीछे से हमले को किस रूप में लिया जाये...?         
दिल्ली पुलिस ने कल और आज जो रुख अख्तियार किया,वह मौजूदा सल्तनत की 

बर्बरता,खूंखार,निरंकुश,निर्मम,बदहवास, बदमिजाज़, असभ्य,अनियंत्रित, असंयमित

अमर्यादित आचरण का प्रतीक है.

तस्वीरों में देखिये तो एक-एक युवतियों पर लक्ष्य करके लाठी मारते हुए,पुलिस के 

चेहरे,उनके विजयी भाव को प्रदर्शित करते हैं और उनके पीछे से ललकारते अन्य 

पुलिस वालों की मर्दानगी साफ झलकती है.

अपराधियों के आगे दुम हिलाने वाली दिल्ली पुलिस, आन्दोलनकारियों पर कितनी 

बहादुरी से लाठी बरसायी...

रात-दिन चुंगी वसूली में मस्त और घटनाओं के वक्त अकसर लुका-छिपी का खेल 

खेलने में माहिर,दिल्ली पुलिस के इस करतूत को देखिये.निहत्थे छात्र-छात्राओं पर 

लाठी भांजने में कितनी प्रशिक्षित और सक्रिय दिखती है.

अपराधियों को देखकर माद में घूस जाने,पेड़ों के पीछे छुपकर दूरबीन विधि से 

शिकार कर चालान काटने का दबाव बनाकर जेब काटने वाली,दिल्ली पुलिस की सारी 

खूबी,लाठी में दिखती है.

आखिर आज अचानक आन्दोलनकारी,सरकार के लिए कितना खतरनाक हो गए 

थे.जबकि कल तक गृहमंत्री बहुत ही उदार भाव से बयान दे रहे थे.रात में खुद 

कांग्रेस अध्यक्ष भी आन्दोलनकारियों से मिलीं थीं और सुबह मिलने का वादा भी कर 

गयीं थीं.     

यह हमला,पूरी आजादी पर हमला है.इस देश के युवाओं पर हमला है.

देश पर हमला है.राजपथ पर हमला है.विजय पथ पर हमला है.जनपथ पर हमला है.लोकतंत्र पर हमला है.जनतंत्र पर हमला है.

अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है.मीडिया पर हमला है.युवतियों पर हमला है.छात्रों 

पर हमला है.छात्राओं पर हमला है.आन्दोलन पर हमला है.अहिंसा पर हमला है.

गाँधी दर्शन पर हमला है. निहत्थों पर हमला है.यह हमला,पूरी आजादी पर हमला 

है.यह बर्बरता का हमला है.यह निरंकुशता का हमला है.यह राजसत्ता का हमला 

है.यह सरकारी मशीनरी का हमला है.यह सरकार का हमला है.यह हमला,हम सब पर 

हमला है. 

अब उठने की जरुरत है.जागने का वक्त है.राजनैतिक व्यवस्था पर छाये कुहांसे को 

चीरने की जरुरत है.

देश के नौजवानों.निर्मम,निरंकुश,जनविरोधी,हत्यारी सत्ता को बदलने की आवश्यकता है.

खुद को बदलिए.देश को बदलिए.समाज को बदलिए.पुलिस को बदलिए.न्याय व्यवस्था 

को बदलिए.राजनीति को बदलिए. बराबरी का समाज गढ़ने कि जरुरत है.

ऐसा समाज बनाने का समय है,जिसमें स्त्री-पुरुष बराबरी से रहें.जहाँ बेटी-बेटे में 

भेदभाव के लिए कोई जगह न हो.

देश के नौजवानों यह देश आपका है.इस सुनहरे देश को अपने सपनों का देश 

बनाइये.इसे किसी राजनैतिक दल के भरोसे मत छोड़िये.

यह मुल्क किसी एक परिवार की जागीर नहीं है.किसी एक/खास वर्ग का चरागाह नहीं है.
यह देश सबका है.हम सबका.इसे बचाइए.हिंसा से नहीं,अहिंसा से.