रमेश यादव /
e-mail: dryindia@gmail.com
28/11/2012/ नई
दिल्ली.
Zee News
प्रकरण के बाद बहुतेरे लोग पत्रकारों और
पत्रकारिता के नैतिकता,सिद्धांत और ‘मिशन’ के बारे में चर्चा करने लगे हैं.इनमें
वे भी शामिल हैं,जो मीडिया संस्थानों से जुड़े हैं या दूर से तमाशा देख रहे हैं...
इस बीच कुछ ऐसे चेहरे भी देखने को मिले,जो मीडिया
जगत में बगुला भगत बने घूम रहे हैं.ऐसे लोगों सिर्फ यहीं कहना है कि पत्रकारिता और
पत्रकारों का मूल्यांकन करने से पहले,उन मीडिया संस्थानों
का पुनर्मूल्यांकन जरुर करें,जिनमें वे (संपादक/पत्रकार/) सेवारत हैं...
इस सवालों पर ध्यान दें और खुद जवाब तलाशें !
1.सम्बंधित मीडिया संस्थान के
संपादक और चोटी के
पत्रकार (सभी नहीं) किसके लिए काम करते हैं औत क्यों...?
2. संपादकों और चोटी
के पत्रकारों के 'मिशन' और 'प्रोफेशन' के पीछे किसका 'मिशन' है... ?
3. सम्बंधित मीडिया
संस्थानों में किन पूंजीपतियों की पूंजी लगी है,सरकार से इनका रिश्ता कैसा है...?
4. मीडिया संस्थानों
को चलाने वाले बनियों/व्यापारियों/पूंजीपतियों का लक्ष्य क्या हैं और उनके
सस्थानों में काम करने वाले,उनके आर्थिक
हितों की रक्षा कैसे और किस हद तक झूक-लेट/रेंग कर करते हैं और क्यों...?
5. सम्बंधित मीडिया
संस्थानों का राजसत्ता / सरकार / राजनीतिज्ञों / राजनैतिक पार्टियों के साथ कैसा
गठजोड़ है और किस तह तक है...
6. मौजूदा मीडिया
संस्थानों में किन-किन की पूंजी/शेयर लगे हैं...ये किस हद और किस सीमा तक शेयर के
आड़ में सम्बंधित मीडिया संस्थान को ब्लैकमेल करते हैं..
7. किन-किन
मीडिया संस्थान के मुखिया/मालिकान किन-किन राजनैतिक पार्टियों का पोंछ पकड़कर
राज्यसभा / लोकसभा गए या सत्ता के बल पर ठेका (कोयला हो या सोना) लिए या अपने आर्थिक
साम्राज्य का विस्तार किये...?
8. इलेक्ट्रानिक
मीडिया और प्रिंट मीडिया के पास कुल जमा पूंजी कितनी है.इसके विस्तार के लिए कौन
से रास्ते अपनाये गए.
9. मीडिया संस्थानों
ने जिस काम के लिए लाइसेंस लिया है,क्या वे वहीँ काम कर रहे हैं...?
10. उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर खोजने / तलाशने के बाद शायद संपादक
/ पत्रकार, कम, मीडिया संस्थानों के चालक,अधिक कुसूरवार नज़र आयेंगे...
मनी,माफिया,मीडिया,मिशन और मानवतावाद :
अब आते हैं मुद्दे
पर.हमें या लोगों को मीडिया की भूमिका को लेकर क्यों चिंता होती है...? क्योंकि
हमारी आदत मीडिया या मीडिया संस्थानों को सामाजिक जिम्मेवारी,जवाबदेही,प्रतिबद्धता और मिशनरी भावना के निगाह से देखने की भ्रमपूर्ण आदत है...
अब आप कहेंगे की
बहुत सारे सवालों को मीडिया ने ही उठया या ज़िंदा रखा है.यदि मीडिया न होता तो जो
घपले-घोटाले हो रहे हैं,वो उजागर न होते...
सोचिये जरा !
मीडिया तो उन्हीं
सवालों को उठता रहा है,जिन्हें कुछ लोग,उठाने के लिए ‘लिक’ किये या जिनसे कुछ
लोगों के हित सधते थे,वरना पानी में रहकर
मगरमछ ,पानी से क्यों बैर करेगा..?
और लाइसेंस लिया
है तो अपने अस्तित्वा को बचाने के लिए कुछ तो करता रहेगा ....
मीडिया का एकतरफा
मूल्यांकन करने की जगह पूँजी गत चरित्र और पूंजीपतियों के हितों और मोट रकम लेने
वालों के महत्वाकांक्षाओं को भी परखने की जरुरत है....
Zee News
तो मात्र बानगी है,जो दागी होने के बावजूद बचे हुए
हैं,उनके पीछे कौन से लोग हैं या कारण हैं....सोचिये...!
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