Sunday 11 November 2012

‘दिया’ बनती ‘चिमनी,आँख सावन-भादो



रमेश यादव

E-mail: dryindia@gmail.com

रोशन !
विश्वविद्यालय में दाखिल होते ही
मेज,कुर्सी और टेबल लैम्प के जुगाड़ में लग गया.
गर्मी हो या बरसात
गाँव में ‘दिया’ की रोशनी में चारपाई पर पढ़ाई करता रहा
और
जाड़े में पुआल के बिस्तर पर लेवा ओढ़कर
उसके गाँव में पढ़ाई का यहीं रिवाज़ था   
उसके दादा के पीढ़ी के लोग अनपढ़ थे
इसलिए वे लोग इसी पढ़ाई को अंतर्राष्ट्रीय माडल समझते थे         
रोशन को
‘दिया’ भी नहीं मिलता
घर वालों के पास वाजिब तर्क होता
घर अधिक है,दिया कम,क्या किया जाये
कभी-कभी मिट्टी का तेल नहीं होता तो
आँगन में एक दिया जलता
उसे से बाकी घरों में रोशनी जाती
रोशन तरकीब लगाता  
किसी खाली शीशी को खोज लाता
उसके ढक्कन को छेदता
किसी फटे-पुराने कपड़े को फाड़ता
उसका बाती बनाता
मिट्टी का तेल डालता
फिर क्या
दिया बन कर तैयार
लालटेन एक ही थी
उसकी ड्यूटी बंगले को रौशन करना था
वहां गाँव के बड़े बुजुर्ग आते
उनकी बैठकी लगती ...
रोशन   
विश्वविद्यालय में दाखिल हुआ
शहर में रहने लगा
कैम्पस से बाहर
गरीब छात्रों के लिए बने छात्रावास में   
यहाँ उसे ‘दिया’ कि जगह
बल्ब की रौशनी में पढ़ना पड़ता
गाँव से चारपाई लाया था
वहीँ उसके बिस्तर-मेज का काम करती
पढ़ते-पढ़ते कब नींद आ जाती पाता ही नहीं चलता
एक दिन सोचा
यदि कुर्सी होती तो देर रात तक पढ़ता
सालों बाद एक परिचित के यहाँ मिलाने गया
उनके यहाँ नई कुर्सी आने से
पुरानी कुर्सियां बेघर हो गईं थीं  
उन्हीं में से उसे एक मिल गई
जीवन में पहली बार कुर्सी पर बैठकर पढ़ा
तब उसे मेज की जरुरत महसूस हुई
सोचा कुर्सी-मेज पर पढ़ने से
लोग अधिक चालाक होते हैं
उसके दिल-दिमाग में संघर्ष होने लगा
कि चारपाई पर सो कर पढ़ने वाले की बुद्धि सोई रहती है कुर्सी-मेज पर पढ़ने वालों की बुद्धि सजग और तेज होती है
रोशन  
जो भी पढ़ता उसे याद नहीं रहता
उसने सोचा इन सबका कारण चारपाई है
जागने के बाद भी वहीँ पढ़ना पड़ता है
जिसे पढ़ते- पढ़ते सो जाता हूँ
अंततः एक दिन वह मेज का भी इंतजाम कर लिया
अब उसने पढ़ने के लिए सप्ताह भर का समय निर्धारित किया.
समय सारिणी को मेज के ऊपर दीवाल पर ‘भात’ से चिपका दिया
एक दिन पढ़ते समय उसे खयाल आया
टेबल लैम्प होता तो किता बढ़िया होता
लैंप की रोशनी सीधे किताब पर पड़ती
आँख को भी सुकून मिलती  
अचानक उसे याद आया
कैसे कभी-कभी हलकी हवा में ‘दिया’,
‘चिमनी’ बन जाती और आँख सावन-भादो
एक दिन 150 रुपये का लैम्प खरीद लाया
मई का महीना आ गया था
गर्मी अपना असर दिखानी शुरू कर दी थी
एक दिन वह पढ़ रहा था
माथे से पसीने का बूंद टप से कापी पर गिरा
और भारत का नक्शा बन गया.
रोशन सोचा यदि पंखा होता तो ...(अधूरी)

रमेश यादव /11/11/2012/505.50/PM
    
  
  
          
   
            

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