Monday 8 October 2012

कवि से बचाओ !

कवि से बचाओ !



एक दिन 
आम आदमी 
चिल्लाया
कहा 
हमें कवि से बचाओ ...!

हमने आश्चर्य से पूछा
क्या हुआ ? 
कवि से कैसा ख़तरा 
आम आदमी ने कहा
तुम भी कवि हो क्या ...? 
हमने कहा,नहीं..
मैं पाठक हूँ ...
फिर
उसकी आवाज़ आयी   

हमें पढ़ो !
कवि की कविता में 
कवि की भावना में  
हमारी अभिव्यक्ति  
दर्द,पीड़ा और कसक की 

मैं कवि का 
कच्चा माल हूँ 
हमारे ही संवेदनाओं और संभावनाओं को 
देता है वह आकार 
पकाता,गढ़ता और रचता है 
शिल्प का संसार 

हमारे ही जीवन संघर्ष को 
बनाता है 
'शब्दों' का संग्रह  

ले जाता है 
वैश्विक बाज़ार में 
जहाँ सजी होती है 
कविता की मंडी 
 
हमारे दुखों पर चढ़ाकर  
रस,छंद,अलंकार,मुहावरा,लक्षणा-व्यंजना और लोकोक्तियों की परत 
 
जहाँ मिलते हैं 
रंग-बिरंगे मुखौटा लगाये  
समीक्षक/आलोचक और खरीदार
दुकान लगाये पुरस्कारों की  

बिचौलिए संचालित करते हैं 
ढ़ों और मठों को 
क्षेत्र,जाति,धर्म और संप्रदाय का टोपी पहने 

कवि 
जीतने में कामयाब होता है 
'कविता' का पुरस्कार 
देखते-देखते 
भर जाती है,उनकी झोली 
रुपयों,पदों,सम्मानों और अवसरों से 

हमारे भविष्य के चिन्तक 
बना लेते हैं 
अपने भविष्य की उज्जवल ईमारत 
हम बन जाते हैं,उनकी नींव 
 
हम जहाँ थे,सदियों पहले
आज भी पड़े हुए हैं,वहीँ पर   

हम ठहरे 
अनपढ़/गंवार 
पढ़ते नहीं हैं हम कविता 
हम तो जीते हैं 
कविता में उद्घाटित जीवन को   

कविता में मौजूद है 
हमारे जीवन संघर्ष का अंश है
हमारे जड़ों तक नहीं पहुंचा है 
कोई कवि 
वह कल्पनाओं से खेलता और रचता है  
हम जीते हैं यथार्थ को...     

21 वीं सदी में भी हम 
किसी का 'होरी' 
और  
'झुनिया' हैं   

आम आदमी चिल्लाया... 
हमें बचाओ... 

शब्दों के इन जादूगरों 
हमारे दर्दों के सौदागरों और भावना के बिचौलियों से

हम खुद लड़ेंगे 
अपनी मुक्ति की लड़ाई 
सुबह होने तक ...  

रमेश यादव /09/10/2012/ नई दिल्ली.  

No comments: