फ़रिश्ते की तरह चाँद का काफ़िला न रोका करो
चाँद
चाँद हो
चाँद की तरह दिखा करो
बादलों में यूँ ही न छिपा करो
हम दीवाने हैं
तुम्हारी शीतल अदाओं के
यूँ ही बादलों में न विचरण किया करो
लिहाज़ हमारी मोहब्बत का भी किया करो
यूँ ही बादलों में न छिपा करो
हम भूखे हैं कब से
तुम्हारे उजाले का
आंधी और बचपन
आज अचानक
आंधी आयी,
आकाशीय बिजली चमकी
बिजली गुल हो गयी
फिर क्या था
बारिश हुई
तापमान ने सिहरन पैदा की
सोच रहा हूँ
काश
बचपन होता
फरिश्ता
फरिश्ता बन
यूँ ही न फिराकर
तुम्हारे फरेबी का राज़ जगजाहिर है
छुपाकर अपने चेहरे को
तिरंगे में
मुल्क को यूँ ही न ठगाकर
हमें दुपट्टे/आंचल और तिरंगे का रंग मालूम है
हमसे रंगों से यूँ ही न
खेला कर
देखें हैं हमने बहुत
काफ़िला
एक उम्र गुजर गयी,हवाओं में बात होते-होते
कभी आमने-सामने भी मिला करो
काफ़ी के टेबल पर बात हो
सिलसिला ही सही,काफिला तो बढ़े ... (अधूरी)
रमेश यादव /22/10/2012/09.40
चाँद
चाँद हो
चाँद की तरह दिखा करो
बादलों में यूँ ही न छिपा करो
हम दीवाने हैं
तुम्हारी शीतल अदाओं के
यूँ ही बादलों में न विचरण किया करो
लिहाज़ हमारी मोहब्बत का भी किया करो
यूँ ही बादलों में न छिपा करो
हम भूखे हैं कब से
तुम्हारे उजाले का
छुपकर बादलों में
यूँ ही न अँधेरा फैलाया करो
कभी हमारे ख़्वाब को भी पूरा किया करो
हटाकर खिड़की का पर्दा
झांक रहा हूँ कब से
दीदार के लिए
चिर कर बादलों के सीने को
सीधे 'बेडरूम' में उतर आया करो
तुम्हारे उजाले पर निर्भर है
हमारा तापमान
आकार बाँहों में यूँ ही सिमट जाया करो
छुपकर बादलों में
हमें न डराया करो ... (अधूरी)
रमेश यादव /23/10/2012/6.55.pm.
यूँ ही न अँधेरा फैलाया करो
कभी हमारे ख़्वाब को भी पूरा किया करो
हटाकर खिड़की का पर्दा
झांक रहा हूँ कब से
दीदार के लिए
चिर कर बादलों के सीने को
सीधे 'बेडरूम' में उतर आया करो
तुम्हारे उजाले पर निर्भर है
हमारा तापमान
आकार बाँहों में यूँ ही सिमट जाया करो
छुपकर बादलों में
हमें न डराया करो ... (अधूरी)
रमेश यादव /23/10/2012/6.55.pm.
आंधी और बचपन
आज अचानक
आंधी आयी,
आकाशीय बिजली चमकी
बिजली गुल हो गयी
फिर क्या था
बारिश हुई
तापमान ने सिहरन पैदा की
सोच रहा हूँ
काश
बचपन होता
नंगा युग के दोस्तों साथ
घर के पिछवाड़े
वहीँ खेल फिर खेलते...
रमेश यादव/ 23/10/2012/05.29.pm
घर के पिछवाड़े
वहीँ खेल फिर खेलते...
रमेश यादव/ 23/10/2012/05.29.pm
फरिश्ता
फरिश्ता बन
यूँ ही न फिराकर
तुम्हारे फरेबी का राज़ जगजाहिर है
छुपाकर अपने चेहरे को
तिरंगे में
मुल्क को यूँ ही न ठगाकर
हमें दुपट्टे/आंचल और तिरंगे का रंग मालूम है
हमसे रंगों से यूँ ही न
खेला कर
देखें हैं हमने बहुत
तुम्हारे जैसे राष्ट्र भक्त
लगाकर 'भबूत' माथे 'राष्ट्र भक्ति' का
यूँ ही न भरमाया कर (अधूरी)
रमेश यादव/ 23/10/2012/10.21/AM.
लगाकर 'भबूत' माथे 'राष्ट्र भक्ति' का
यूँ ही न भरमाया कर (अधूरी)
रमेश यादव/ 23/10/2012/10.21/AM.
काफ़िला
एक उम्र गुजर गयी,हवाओं में बात होते-होते
कभी आमने-सामने भी मिला करो
काफ़ी के टेबल पर बात हो
सिलसिला ही सही,काफिला तो बढ़े ... (अधूरी)
रमेश यादव /22/10/2012/09.40
6 comments:
बहुत बढ़िया सर!
सादर
bahut khoob ......chaand ke bahaane ...
खूबसूरत खयाल .... पर रचनाएँ अधूरी क्यों हैं ?
ऋतु परिवर्तन के समय 'संयम 'बरतने हेतु नवरात्रों का विधान सार्वजनिक रूप से वर्ष मे दो बार रखा गया था जो पूर्ण वैज्ञानिक आधार पर 'अथर्व वेद 'पर अवलंबित था।नौ औषद्धियों का सेवन नौ दिन विशेष रूप से करना होता था। पदार्थ विज्ञान –material science पर आधारित हवन के जरिये पर्यावरण को शुद्ध रखा जाता था। वेदिक परंपरा के पतन और विदेशी गुलामी मे पनपी पौराणिक प्रथा ने सब कुछ ध्वस्त कर दिया। अब जो पोंगा-पंथ चल र
हा है उससे लाभ कुछ भी नहीं और हानी अधिक है। रावण साम्राज्यवादी था उसके सहयोगी वर्तमान यू एस ए के एरावन और साईबेरिया के कुंभकरण थे। इन सब का राम ने खात्मा किया था और जन-वादी शासन स्थापित किया था। लेकिन आज राम के पुजारी वर्तमान साम्राज्यवाद के सरगना यू एस ए के हितों का संरक्षण कर रहे हैं जो एक विडम्बना नहीं तो और क्या है?
badhiya rachnayen.
बेहद सुन्दर भाव पूर्ण भावनाओं क संसार........हार्दिक आभार
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