Sunday 9 September 2012

असम पर आक्रामक और खंडवा पर खंड-खंड राष्ट्रीय मीडिया


  पानी में ज़िंदा लाश बनी आंदोलनकारी जनता के मुद्दे पर दिनौनी से पीड़ित मीडिया  



डॉ. रमेश यादव

9 सितम्बर,2012 नई दिल्ली.
 मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के घोघल गाँव में 15 दिनों से पुनर्वास की मांग को लेकर जल सत्याग्रह  

मीडिया और मुद्दे 

गुवाहाटी,असम,दक्षिण भारत,मुंबई विरोध प्रदर्शन,गीतिका-कांडा प्रकरण,कोल ब्लाक आवंटन और चाँद-फिज़ा पर दिन रात फ़िदा,भंवरी के भंवरों की तलाश.अन्ना और रामदेव के अभियान में दिन-रात फ्लैश मारते कैमरे / मीडिया को पानी में ज़िंदा लाश बनी आंदोलनकारी जनता दिख क्यों नहीं रही है...?

 उपरोक्त मुददों पर आक्रामक दिखने वाला राष्ट्रीय मीडिया मध्य प्रदेश के खंडवा पर खंड-खंड की मुद्रा में क्यों दिख रहा है...? यहाँ मीडिया दिनौनी का शिकार है या फिर टीआरपी का गुलाम...? 

इतना कठिन तप तो संभवतः भागीरथ ने भी गंगा को धरा पर लाने के लिए नहीं किया होगा,जितना कठिन तप खंडवा के लोग पानी से पुनर्वास के लिए कर रहे हैं.
    
जल प्रेम में डूबी मध्य प्रदेश सरकार को 15 दिनों से जल में सत्याग्रह कर रही जनता की फिक्र नहीं है.इस मुद्दे को राष्ट्रीय मीडिया उस निगाह से नहीं कवर कर रहा है,जिस आक्रामक अंदाज़ में असम और उससे जुड़ी घटनाओं को कवर किया.

हालाँकि दो दिन पूर्व हमने एनडीटीवी के रिपोर्टर को पानी में हेलकर आंदोलनकारी महिला-पुरुषों से बात करते  
हुए देखा था.बावजूद इसके खंडवा पर देश का ध्यान आकर्षित करने और सरकार को जन के पक्ष में निर्णय लेने के लिए दबाव बनाने में मीडिया असफल रहा है.
   
गौरतलब है  
मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के घोघल गाँव में नर्मदा बचाओ आंदोलन का जल सत्याग्रह 15 दिनों से पुनर्वास की मांग को लेकर 50 से अधिक लोग आंदोलनकारी पुरुष-महिलाएं पानी में बैठे हैं.

क्या है मामला 
ओंकारेश्वर में 189 मीटर और इंदिरा सागर बाँध में 260 मीटर पानी भरा जा रहा है.इससे खंडवा और हरदा जिले के कई गाँव डूब क्षेत्र में आ गए हैं.इनमें घोघल भी शामिल है. यहाँ पुनर्वास कार्य पूरे नहीं हुए हैं.नर्मदा बचाओ आन्दोलन के कार्यकर्ता 2011 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन करने की मांग कर रहे हैं.कोर्ट ने कहा था कि पुनर्वास शासन और नर्मदा घाटी विकास बोर्ड की संवैधानिक जिम्मेदारी है.        

जल,जंगल,जमीन और जन विद्रोही सरकारों का चरित्र 
निरंतर गाँधीवादी माला जपने वाली कांग्रेस पार्टी और केंद्र की यूपीए सरकार को खंडवा में गाँधीवादी आंदोलन के रास्ते अपनी मांग पर पानी में बैठे लोगों के प्रति कोई चिंता नहीं है.सरकार ने 15 दिनों में कोई सार्थक हस्तक्षेप नहीं किया है.

मानवतावाद की ठेकेदार आरएसएस की गोद से पैदा भाजपा/मध्य प्रदेश सरकार मानवतावाद के खिलाफ खड़ी नज़र आ रही है.15 दिनों में भाजपा सरकार ने कोई ऐसा कदम नहीं उठाया,जिसे लोकतान्त्रिक कदम कहा जाये.

चुप हैं क्यों महिलावादी गढ़ और मठ ?  
जल सत्याग्रह में सिर्फ पुरुष ही शामिल नहीं हैं,बल्कि बड़ी संख्या में महिलायें भी हैं,लेकिन महिलाओं के हित में काम करने वाली संस्थाओं ने उक्त मुद्दे पर अपना मुख खोलना मुनासिब नहीं समझा.बात-बात उबलते भात की तरह भद-भदाने वाली संस्थाओं को डर है कि कहीं सरकारी सुविधाएँ/फंड ने छीन जाये.पुरस्कार से वंचित न रह जाएँ.     

लोकतंत्र में लोक का दर्द
लोकतंत्र में लोक के दर्द को सरकारें निरंतर अनसुना कर रही हैं और पूंजीवादी संस्थाओं/व्यवस्थाओं के लिए काम कर रही हैं.
सरकार के इस कदम से लोक का हित प्रभावित हो रहा है.सरकारें पूंजीवादी हितों का संरक्षण कर रही हैं.
खेदजनक बात तो यह है की बहुत सारे मसलों पर आक्रामक मीडिया जनवादी मुददों पर चुप्पी साधे हुए है.

आज जरुरत है खंडवा की जनता के साथ खड़े होने की.     





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