Thursday 20 September 2012

किसको दोखा दे रहो हो भाई !



1

छोटे/मझोले किसानों को खाद तक नहीं मिल पा रहा है/धान-गेहूं को बिचौलियों के माध्यम से बेचना पड़ता है/समर्थन मूल्य तक नहीं मिल पाता
सरकारी सुविधाएँ बड़े किसानों सीमित रहती हैं.इसमें से अधिक किसान बहुधंधी हैं.इसका लाभ खास वर्ग ही उठा पा रहा है.फिर कांग्रेस किस मुंह से कह रही है वाल-मार्ट/एफडीआई के आने से किसानों का उद्धार हो जायेगा/
उनका सदियों का दलिद्दर दूर हो जायेगा...

2
मीडिया के मंच पर फेल रहा भारत बंद का कवरेज :
कारण-
1.ममता बनर्जी के प्रेसवार्ता का लाइव प्रसारण 
2.अन्ना-अरविन्द के बीच दरार बढ़ाने पर फोकस 
3.पाकिस्तान के डिप्लोमैटिक इन्क्लेव में स्थित अमेरिकी दूतावास के पास प्रदर्शन का लाइव प्रसारण 
4. लेफ्ट-बीजेपी के एक मंच पर आने को लेकर अधिक विश्लेषण 
5.पहली बार भारत बंद के जरूतर पर मूल्यांकन....
6.गणपति विसर्जन का लाइव कवरेज ...

3
भारत बंद: 
रौशनी नीलाम करके पूछते हो,
कहो आफताब क्या हाल है ...? (अज्ञात)

4
जनता के नाम पर ढोंग करने वाले रंगासियारों को पहचानिये और समझिए.चुनाव में इन्हें एक जोर का धक्का दीजिए..
जागो जनता जागो....!

5
गैस कनेक्शन देने वाली एजेंसियां कितनी चोरी/धांधली करती हैं/आवश्यकता न होने के बावजूद सिलेंडर के साथ चूल्हा देने के नाम पर मनमानी तरह से लूटती हैं.... २५०० की जगह ५५००-६००० रुपये लेती हैं .कहीं-कहीं इससे अधिक में भी लेती हैं...
उन्हें सिर्फ पैसा दीजिए,दस्तावेज न हो तो भी कनेक्शन मिल जायेगा....
इस पर कोई क्यों नहीं बोलता ....?

6
कुछ चैनल भारत बंद को 'महाबंद' बता रहे हैं.ममता कह रही हैं बंगाल में बंद का असर नहीं रहा.
महाराष्ट्र का बयान है गणपति के वजह से बंद नहीं था.
शेष जानकारी बंद को देखने वाले दे सकते हैं .......

7
एफडीआई का अंधा विरोध करने वाले देशी बनियों/व्यापारियों/चोरों/कालेबाजारियों/ के बारें चुप हैं...क्यों ?
इसका राज़ क्या है ...?

8
कोटेदार जनता को घोषित चीनी /मिट्टी का तेल/ अनाज नहीं देता/चोरी करता है.
प्रधानों /नेताओं/ दबंगों/जिलापूर्ति अधिकारीयों के साथ मिलकर घालमेल करता है....कालेबाजारी करता है.इसके खिलाफ लोग क्यों नहीं बोलते ....?

9
यहीं भाजपा थी,80 रुपये तक टमाटर बेची थी.
कांग्रेस-भाजपा महंगाई की दादी-नानी हैं ....
इनको पहचानिये,बिचौलिए/बहुरूपिये पार्टियों से बचिए ........
समय आने पर जोर का धक्का दीजिए ....

10
भारत बंद में शामिल लोगों को देख रहा हूँ.इसमें वे लोग नहीं दिख रहे हैं,जिनके चेहरे पर झुर्रियाँ हो,पीठ पर फटी गंजी और नंगे पैर...
जिनके नाम पर भारत को बंद किया गया है...या जिनके नाम पर संसद को ठप रखा गया...अधिकतर चेहरे टमाटर/सेब/गुलाब की तरह लालीमा लिए युक्त दिख रहे हैं...लकदक कुर्ता पायजामा/खादी/लिनेन/रेशम/मटका/सिल्क /काटन/...पहने...घूम फिरकर तो यहीं दिखते हैं ...पढ़ने वाले 'लिंग' परिवर्तन करके भी पढ़ सकते हैं....

11
यदि इस मुल्क में तस्वीर देखकर जनता वोट देती तो शहीद-ए-आजम भगत सिंह एवं साथियों के नाम पर लोग चुनाव नहीं लड़ते,जीतते और सरकार बनाते...
अन्ना किस भ्रम में हैं ...?

Sunday 9 September 2012

असम पर आक्रामक और खंडवा पर खंड-खंड राष्ट्रीय मीडिया


  पानी में ज़िंदा लाश बनी आंदोलनकारी जनता के मुद्दे पर दिनौनी से पीड़ित मीडिया  



डॉ. रमेश यादव

9 सितम्बर,2012 नई दिल्ली.
 मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के घोघल गाँव में 15 दिनों से पुनर्वास की मांग को लेकर जल सत्याग्रह  

मीडिया और मुद्दे 

गुवाहाटी,असम,दक्षिण भारत,मुंबई विरोध प्रदर्शन,गीतिका-कांडा प्रकरण,कोल ब्लाक आवंटन और चाँद-फिज़ा पर दिन रात फ़िदा,भंवरी के भंवरों की तलाश.अन्ना और रामदेव के अभियान में दिन-रात फ्लैश मारते कैमरे / मीडिया को पानी में ज़िंदा लाश बनी आंदोलनकारी जनता दिख क्यों नहीं रही है...?

 उपरोक्त मुददों पर आक्रामक दिखने वाला राष्ट्रीय मीडिया मध्य प्रदेश के खंडवा पर खंड-खंड की मुद्रा में क्यों दिख रहा है...? यहाँ मीडिया दिनौनी का शिकार है या फिर टीआरपी का गुलाम...? 

इतना कठिन तप तो संभवतः भागीरथ ने भी गंगा को धरा पर लाने के लिए नहीं किया होगा,जितना कठिन तप खंडवा के लोग पानी से पुनर्वास के लिए कर रहे हैं.
    
जल प्रेम में डूबी मध्य प्रदेश सरकार को 15 दिनों से जल में सत्याग्रह कर रही जनता की फिक्र नहीं है.इस मुद्दे को राष्ट्रीय मीडिया उस निगाह से नहीं कवर कर रहा है,जिस आक्रामक अंदाज़ में असम और उससे जुड़ी घटनाओं को कवर किया.

हालाँकि दो दिन पूर्व हमने एनडीटीवी के रिपोर्टर को पानी में हेलकर आंदोलनकारी महिला-पुरुषों से बात करते  
हुए देखा था.बावजूद इसके खंडवा पर देश का ध्यान आकर्षित करने और सरकार को जन के पक्ष में निर्णय लेने के लिए दबाव बनाने में मीडिया असफल रहा है.
   
गौरतलब है  
मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के घोघल गाँव में नर्मदा बचाओ आंदोलन का जल सत्याग्रह 15 दिनों से पुनर्वास की मांग को लेकर 50 से अधिक लोग आंदोलनकारी पुरुष-महिलाएं पानी में बैठे हैं.

क्या है मामला 
ओंकारेश्वर में 189 मीटर और इंदिरा सागर बाँध में 260 मीटर पानी भरा जा रहा है.इससे खंडवा और हरदा जिले के कई गाँव डूब क्षेत्र में आ गए हैं.इनमें घोघल भी शामिल है. यहाँ पुनर्वास कार्य पूरे नहीं हुए हैं.नर्मदा बचाओ आन्दोलन के कार्यकर्ता 2011 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन करने की मांग कर रहे हैं.कोर्ट ने कहा था कि पुनर्वास शासन और नर्मदा घाटी विकास बोर्ड की संवैधानिक जिम्मेदारी है.        

जल,जंगल,जमीन और जन विद्रोही सरकारों का चरित्र 
निरंतर गाँधीवादी माला जपने वाली कांग्रेस पार्टी और केंद्र की यूपीए सरकार को खंडवा में गाँधीवादी आंदोलन के रास्ते अपनी मांग पर पानी में बैठे लोगों के प्रति कोई चिंता नहीं है.सरकार ने 15 दिनों में कोई सार्थक हस्तक्षेप नहीं किया है.

मानवतावाद की ठेकेदार आरएसएस की गोद से पैदा भाजपा/मध्य प्रदेश सरकार मानवतावाद के खिलाफ खड़ी नज़र आ रही है.15 दिनों में भाजपा सरकार ने कोई ऐसा कदम नहीं उठाया,जिसे लोकतान्त्रिक कदम कहा जाये.

चुप हैं क्यों महिलावादी गढ़ और मठ ?  
जल सत्याग्रह में सिर्फ पुरुष ही शामिल नहीं हैं,बल्कि बड़ी संख्या में महिलायें भी हैं,लेकिन महिलाओं के हित में काम करने वाली संस्थाओं ने उक्त मुद्दे पर अपना मुख खोलना मुनासिब नहीं समझा.बात-बात उबलते भात की तरह भद-भदाने वाली संस्थाओं को डर है कि कहीं सरकारी सुविधाएँ/फंड ने छीन जाये.पुरस्कार से वंचित न रह जाएँ.     

लोकतंत्र में लोक का दर्द
लोकतंत्र में लोक के दर्द को सरकारें निरंतर अनसुना कर रही हैं और पूंजीवादी संस्थाओं/व्यवस्थाओं के लिए काम कर रही हैं.
सरकार के इस कदम से लोक का हित प्रभावित हो रहा है.सरकारें पूंजीवादी हितों का संरक्षण कर रही हैं.
खेदजनक बात तो यह है की बहुत सारे मसलों पर आक्रामक मीडिया जनवादी मुददों पर चुप्पी साधे हुए है.

आज जरुरत है खंडवा की जनता के साथ खड़े होने की.