Friday 24 August 2012

समस्याओं के कब्र पर ज़िंदा हैं संस्थाएं


डॉ. रमेश यादव

२४ अगस्त,२०१२, नई दिल्ली.

यूएनडीपी/यूनीसेफ/यूनेस्को और इन जैसी तमाम अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं दुनिया में आम आदमी के शिक्षा/स्वास्थ्य/जनसँख्या नियंत्रण /गरीबी/भूखमरी/मानवाधिकार /बेहतरी से जुड़े ढेर सारे क्षेत्रों में काम करती हैं.

लेकिन इनका मकसद/उद्देश्य उक्त विषयों के अध्ययन/सर्वे/फिल्ड विजिट /प्रकाशन/फाइलिंग/मीडिया कवरेज/कार्यशाला/सेमिनार आदि तक सीमित रहता है.या अपने आपको यहीं तक सीमित रखती हैं.

इन संस्थाओं द्वारा जब भी कोई कार्यक्रम आयोजित किया जाता है.मसलन कार्यशाला/सेमिनार रिपोर्ट रिलीज/मीडिया से बातचीत.ये सारे कार्यक्रम 3 स्टार होटलों में आयोजिते होते/किये जाते हैं.इससे कम में कोई चाह कर भी नहीं कर सकता.क्योंकि ये उनके समझौते में शामिल होता है,फंडिंग एजेंसीज के साथ.

ये संस्थाएं उक्त कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए जब भी विषय विशेषज्ञों/जानकारों / विशेष मेहमानों को आमंत्रित करती हैं,तो उनके ठहरने की व्यवस्था 4 स्टार होटलों में करती हैं.

यानी आयोजन स्थल और ठहरने के स्थान में एक स्टार का फर्क होना चाहिए.इस तरह के कार्यक्रमों में जो लोग भाग लेते हैं,वे अपने-अपने क्षेत्र में आम-अवाम के लिए संघर्षरत चेहरा /चिन्तक/सिद्धांतकार/कार्यकर्ता/हमदर्द होने का तमगा लिए घूम रहे होते हैं/रहनुमा समझे जाते हैं,लेकिन दरअसल ये असली मायने में परिवर्तनकारी होने का खोल ओढ़े होते हैं.    
 
अब आप समझ गए होंगे कि इन्हीं कामों के प्रबंधन में पूरे बजट का करीब 70 से 80 फीसदी खर्च हो जाता है.
लेकिन जिसके लिए ये काम करते हैं/जिनके नाम पर प्रोजेक्ट लेते /चलाते हैं,उनके जीवन स्तर में कोई बदलाव नहीं हो पाता.अपवादों को छोड़कर.

अब आप सवाल उठा सकते हैं कि जिनके लिए ये काम करते हैं,उनके बीच में क्यों नहीं अपने गतिविधियां संचालित करते हैं.

हमें उनके उद्येश्यों के बारे में ठीक-ठीक जानकारी नहीं है,लेकिन जहाँ तक समझ पा रहा हूँ.इनका मकसद किसी भी समस्या को फंडिंग निगाह से देखना/आंकड़े जुटाना/ उजागर करना और इसी बहाने बने रहना/ ज़िंदा रहना है.

अगर ऐसा नहीं होता तो जब से ये संस्थाएं जन्म ली हैं/ काम कर रही हैं,तब से यदि ये जमीनी स्तर पर प्रभावित व्यक्ति को सीधे लाभ पहुंचाई होतीं तो तमाम समस्याएं कब की खत्म हो गई होती.

लगता है जब तक समस्याएं हैं तब तक ये संस्थाएं हैं.समस्याएं रहेंगी तभी ये संस्थाएं रहेंगीं/फलेंगी-फूलेंगी.इसलिए ये संस्थाएं कभी नहीं चाहेंगीं की समस्याएं समाप्त हों....

अगले भाग में इन संस्थाओं द्वारा संचालित कार्यक्रमों और उससे जुड़ी समस्याओं के बारे में बताएँगे.      
      








           

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