Sunday 17 June 2012

परमाणु बम है पर पानी नहीं



     

रमेश यादव
१८ जून,नई दिल्ली  
हमारे पास 
परमाणु बम है 
मिसाइल है 
पब है 
बार है
रेस्तरा है 
मेट्रो है 
हाईवे है 
देश की राजधानी है 
पर 
पीने का पानी नहीं है ....?
फक्र कीजिये.हमारे मुल्क के पास परमाणु बम है.मिसाइल है. लेकिन लोगों को पीने के लिए पानी नहीं है.गाँव-कस्बों को छोड़िये,देश की राजधानी प्यासी है.एक-दो दिन से नहीं,हफ़्तों से.इस मसले पर लोकतान्त्रिक सरकारें असमर्थ-असहाय और असंवेदनशील दिख रही हैं.संभवतः यह अपने आप में अनोखी राष्ट्रीय राजधानी होगी.हमारे जानकारी के मुताबिक दूसरे मुल्कों की राजधानियों की कम से कम ऐसी स्थिति तो नहीं ही होगी.  
राजधानी में सब कुछ तो है.पब हैं.बार हैं.रेस्तरा हैं.मेट्रो है.ओवर ब्रिज हैं.माल है.पार्क हैं,उसमें संगीत मयी फौवारे हैं.स्विमिंग पुल है.दुधिया रोशनी में जगमगाती हसीन रात है.घोटाले के लिए पैसे हैं.पानी के प्रोजेक्ट के लिए विश्व बैंक है.फिर भी लोगों को ४५-४६ तापमान में गला तर करने के लिए पानी नहीं है.
जो पानी मिल भी रहा है,वह इतना भयंकर शुद्ध है कि निरोगी  आदमी को भी रोगी बना दे.गलती से किसी सुबह किसी बर्तन में पानी रखकर भूल जाइये,वापस शाम को आइए,उस बर्तन को देखिये.सफेदी आपका इंतज़ार कर रही होगी.टीडीएस इतना की क्या कहना.
इस शहर का अपना क्या है ? मानसून बंगाल की खाड़ी से उमड़ते-घुमड़ते,केरल के रास्ते,मुंबई होते हुए दस्तक देता है.गर्मी राजस्थान के अरावली पहाड़ियों से टकराते हुए यहाँ चिंगारी फेंकती है.सर्दी कश्मीर-शिमला से आती है.पड़ोसी राज्यों,मसलन हरियाणा आदि के नहर का पानी न आये तो यहाँ जो पानी मिल रहा है,वह भी सपना हो जाये.
जो भो हो,सरकारें आदमी को मूलभूत सुविधायें भले न दे रही हों लेकिन भ्रष्टाचार,लूट और घोटाले की नदी जरुर बहा रही हैं.आप किनारे बैठ कर उन्हें टुकुर-टुकुर देखते रहिये और जब चुनाव आये तो जाति,क्षेत्र,धर्म,भाई-भतीजावाद और पार्टी के नाम पर वोट देते रहिये और विजेता बनाते रहिये ...? आप के हाथ में वोट देने की मजबूरी-लाचारी के अलावा और है ही क्या ?
बड़े बुजुर्ग कहते थे.पुण्य कमाना है तो आदमी को अपने जीवन में पांच पेंड़ और एक कुआँ जरुर खुदवाना चाहिए.लोगों ने इसे पुण्य और आस्था सो जोड़ दिया ताकी लोग यह काम बखूबी करें.इसका प्रमाण मेरे पास है.मेरे परदादा.उस ज़माने में दो कुआं खुदवाए,जब सुखा पड़ता था,लोग पानी की जगह दूध पीते थे.बाद के दिनों में इसी कुएं से पहले मोट और अब मशीन से सिंचाई होने लगी और आज भी इस कुएं का पानी जीतना मीठा और शीतल है.उतना हेम मालिनी के आर.ओ. का भी नहीं होगा.
पहले लोग तालाब का निर्माण करवाते थे.पोखरा खुदवाते थे.मेरे गाँव में ३६ बीघे का पोखरा था,आज भले लोग उसे पाटकर घर बना लिए हों,लेकिन कई अब भी सुरक्षित हैं.
इसे सुरक्षित और संरक्षित रखने के लिए जो परियोजनाएं आती हैं,वो कागज पर ही संपन्न हो जाती हैं.ब्लाक के अधिकारीयों और ग्राम प्रधान की कृपा से.  
शहरों में जो तालाब थे,उसे पाटकर भूमाफियाओं-दबंगों ने माल,फ़्लैट आदि बना लिए.बनारस के लोग मोती झील को याद कर सकते हैं.सरकार के स्तर पर पोखरा-तालाब के लिए सक्रिय और सार्थक कदम नहीं उठाये गए.
जब पानी ही संरक्षित नहीं रहेगा तो लोगों को पानी मिलेगा कहाँ से.सरकार सब कुछ कर रही है,लेकिन इस दिशा में क्यों नहीं कुछ करना चाहती है.
जल,जंगल और जमीन की दुश्मन सरकार के खिलाफ भी लोगों को दोस्त बनकर इस समस्या के हल के लिए लड़ना होगा.अब इसे जल के लिए युद्ध कहिये या और कुछ नाम दीजिए.यहीं एक मात्र विकल्प है.    
     

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