Tuesday 5 June 2012

पौधे जैसा मेरा जीवन


पौधे जैसा मेरा जीवन


पर्यावरण से प्यार    

पांच जून को अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस होता है.इसी तारीख में मेरा जन्म दिन (सरकारी कागज पर) दर्ज है.यह तारीख वैश्विक सरोकार,मसलन पर्यावरण से तालुकात रखती है.यह जानकर फक्र होता है.मुझे शुरू से ही पेड़-पौधों से गहरा लगाव-प्यार रहा है.बचपन में ही पौधा लगाने का शौक पैदा हुआ.बचपन का कुछ हिस्सा नानी गाँव बीता.घर के सामने काफी जमीन थी और पोखरी.थोड़ी दूरी पर बागीचा था.हम लोग अक्सर उसमें जाते.माँ की एक दोस्त,इसे बागीचे को फल के सीजन के हिसाब से खरीदती थीं.बारिश में आम और अन्य पौधे उगे आते,जिन्हें निकालकर हम लाते और पोखरी के किनारे लगा देते.घर के बड़ों को लगता कि यह पौधा बड़ा होने पर खेत को नुकसान पहुँचायेगा.जब मैं नहीं होता,लोग उसे उखाड़ देते.मैं फिर लाकर लगाता.यह सिलसिला निरंतर चलता रहता.मेरे हाँथ से लगे पौधे,अब पेड़ हो गए हैं.कई तो वक़्त के साथ खत्म भी हो गए.

उजड़ा हुआ चमन

बाद के दिनों में पोखरी पाट कर उसमें खेती होने लगी.नानी नहीं रहीं,बीस साल हुआ होगा.मामा वहीँ पर पक्का घर बना लिए.जब मैं १९९३ में नानी गाँव गया था,पूरा गाँव जैसे सूना-सूना लग रहा था.बाग-बगीचे सब उजड़ गए थे.अब न वो हरियाली थी और न ही जिंदापन.वह पीढ़ी भी खत्म हो चली थी,जो बाग-बगीचे से मोहब्बत करती थी.पौधे लगाती,उसे बेटे-बेटी की तरह पालती-सींचती.जब नई पीढ़ी आयी तो उसने पुरानी पीढ़ी के विरासत को जिंदा रखने के बजाय,उजाड़ना और नीलाम करना शुरू किया.बात यहीं तक सीमित नहीं थी,यह पीढ़ी गाँव से शहर की तरफ पलायन कर गई और उजड़ा हुआ चमन छोड़ गयी.                     

पौधे जैसा मेरा जीवन

आज इतने साल बाद अपने जीवन परिवेश की तरफ मुड़ कर ताकता-देखता हूँ तो लगता है,अपना जीवन संघर्ष भी तो पौधों (पौधे का चित्र देखें) की तरह ही रहा है,जो धरती को फाड़कर उगते है.जैसे हम इस असमान,असंगत और अप्रिय व्यवस्था के जकड़न को चीर-फाड़कर आगे बढ़े हैं.पौधों के साथ भी तो यहीं सुलूक किया जाता है.लोग उसे नोचते,उखाड़ते और काटते हैं.सिर्फ हमीं क्यों ? इस व्यवस्था में हम जैसे करोड़ों लोग होंगे.हम जिस जमीन से तालुकात रखते हैं,वहां का जीवन तो इस पौधे जैसा ही है,जो धरती को फाड़कर उगते हैं और हम जैसे लोग सामाजिक जकड़न,जड़ता और मकड़जाल को फाड़कर पौधों की तरह है,उगते,आगे बढ़ते और मुकाम हासिल करते हैं.    

बाढ़ और विवशता
पिछले साल जून में ग्रीष्मावकाश के लिए गाँव गया था.माँ-पिता जी के लिए नवनिर्मित घर के आसपास करीब अस्सी पौधे लगाये.जाते हुए अगस्त में बाढ़ आयी और महीने भर थम-जम  गयी.पन्द्रह दिनों तक पौधों के सिर के ऊपर इसका एकछत्र राज़ रहा,जब गयी,आधे पौधों का जान लेती गई.साथ में पौधों के लिए बुने गए सपने,अरमान,मेहनत और पैसे को मटियामेट करती गई.पिता जी रोज,बाढ़ के घटने-बढ़ने और हटने की ‘मोबाईल कमेंट्री’ करते रहे.इस बाढ़ ने सिर्फ पौधों को ही नहीं लीला,धान की फसलों को भी नष्ट करती गई.पिता जी से जब भी बात होती,पौधे के बारे में पहले पूछते,वे कहते गाँव-जवार भी डूब रहा है.उनके इस ‘भी’ पर ‘भी’ मैं सोचता,लेकिन क्या करता...?

चोली और दामन
हमारा गाँव गड़ई नदी के किनारे बसा हुआ है.बचपन से देखता आ रहा हूँ.मेरे गाँव का बाढ़ से चोली-दामन का रिश्ता है. हालांकि जैसे-जैसे चोली,दामन से कम होती गयी.आधुनिक प्रचलन खत्म होती गयी.ठीक वैसे–वैसे बाढ़ भी कम होती गयी.लेकिन बाढ़ अब भी आती है,एक दम वैसे ही,जैसे कोई नया डिजाइनर,चोली को नए अंदाज़ में डिजाइन कर बाजार में लाता-उतरता और खपाता है.लेकिन गाँव और बाढ़ के जीवन का सम्बन्ध आधुनिकता और प्रचलन से मेल नहीं खाती.गाँव का जीवन तो प्रकृति के प्रकोप और प्यार पर ज़िंदा है.इसलिए वहाँ के समाज में दामन पर चोली अब भी वैसे ही जैसे बाढ़ भी आती-जाती रहती है.
एक बार की बात है.बाढ़ आयी थी.चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ पानी ही पानी दिखता था.क्षेत्र के सांसद दौरा करने आये.गाँव के लोगों ने अपना दुखड़ा रोया.जानते हैं,सांसद ने क्या कहा, तुम लोगों को नदी के किनारे बसने के लिए किसने कहा था.? अब बताइए इसका जवाब क्या हो सकता था ...? सांसद सजातीय थे लोग चुप हो गए.लेकिन जब विधायक दौरे पर आये तो गाँव के ही एक सज्जन उनका कालर पकड़ लिए और उन्हें धक्का दे दिए.खैर छोड़िये यहाँ बाढ़ के दिनों के जीवन के बारे में नहीं बता पाएंगे.आज बस इतना ही...  

गर्मी की छुट्टियाँ
 एक साल बाद इस बार फिर मई में ग्रीष्मावकाश में गाँव गए थे.पौधों से मुलाकात हुई.बचे हुए पौधे बहुत खुश थे.नई पत्तियां आ गयी थीं.पिता जी रोज उनका सेवा जो करते हैं.सुबह-शाम नियमित पानी देते हैं.जब वे कहीं गए होते हैं तो ये काम माँ और छोटी बहन रेनू करती हैं.
आजकल अजित-आरती,सोनी-कविता और अमरजीत (भांजा-भांजी) छुट्टियाँ मनाने आये हुए हैं.पिछले साल पौधा लगाते समय भी ये लोग थे.पौधों को पानी देते समय इनकी ऊर्जा देखते बनती है.उत्साह इतना कि एक ही पौधे में,एक जग की जगह दो जग पानी देते हैं.इस बार अनार में २० फल लगे थे.मुझसे अधिक पिता जी खुश थे.बच्चे लोग तो हम दोनों से ही अधिक.क्योंकि पौधों की लिस्ट वे लोग ही बनाये थे.

सोचता हूँ.यदि सब लोग पौधों से प्यार करते.इसे लगाते और हिफाजत करते तो दुनिया कितनी निराली,हरी-भरी और खूबसूरत  होती.प्रकृति हम पर कितनी मेहरबान होती.पर्यावरण का संतुलन बना रहता.   

ये बात पूंजीपतियों-धन,पिपासुओं को कौन समझाए जो प्राकृतिक संसाधनों का निरंतर और अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं.निजी हित और पूंजी के लिए.पूंजीवादी साम्राज्यवाद ने कितन नष्ट किया है.हमारे प्रिय प्रकृति को.हमारे जीवन को.जल को.जंगल को.जमीन को.हमारे सब कुछ को.     

आभार और शुभकामनाएं !

और अंत में उन सभी पर्यावरण प्रेमियों और शुभचिंतकों के प्रति दिल से आभार और हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ,जो इस तारीख को याद रखे और इसी बहाने मुझे भी याद किये. 







चित्र सन्दर्भ:
पहल चित्र ‘पवार ऑफ लाइफ’बीबीसी संवाददाता श्री रामदत्त त्रिपाठी जी के वाल/प्रोफाइल से लिया गया है,जबकि दूसरा मेरे निर्माणाधीन घर का है.   




6 comments:

सदा said...

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति... बधाई सहित शुभकामनाएं

रमेश यादव said...

आभार सहित धन्यवाद !

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

पौधों में नई नई पत्तियाँ आती रहे... उनकी खुशी में ही सब की खुशी है....
बहुत ही प्यारी धुन लगाई रखी है आपने....
जन्म दिन की सादर बधाईयां

रमेश यादव said...

शुक्रिया बहुत बहुत, हबीब साहेब !

डॉ.सुनीता said...
This comment has been removed by the author.
डॉ.सुनीता said...

एक छोटे पुष्प के माध्यम से जीवन के सच की अभिव्यक्ति बेहद मार्मिक और झकझोरने वाली है.
तारीफ के लिए वाजिब shbd नहीं हैं...
सादर...!!!