Sunday 29 April 2012

कविता क्या है ?


रमेश यादव 
२८ अप्रैल,२०१२.नई दिल्ली. 
मैं कवि नहीं हूँ,लेकिन पता नहीं क्यों आजकल मेरे ऊपर कवि होने का भूत सवार है.यह काव्य पाठ में जाने का असर है या घर में 'कविता' के होने का.ऊर्जा का स्रोत चाहे जो भी हो,लेकिन कविता का स्रोत तो अपना जीवन ही है...
यहाँ मेरी कुछ कविताएं प्रस्तुत हैं,
उम्मीद है आप इसे पढ़ेंगे और निर्मम आलोचना करेंगे...    

1
मेरे पुरुखों ने 
इतने लिंग-भेद किये हैं 
कि 
मैं 
लिंग में 
भेद करना भूल गया हूँ .


तुम फेसबुक की कविता हो 
मैं खेत-खलिहान की कविता हूँ 
लोग तुम्हें पसंद करते हैं 
और  
गाँव के लोग मुझे जीते हैं
अपनी ज़िन्दगी के रगों में. 


क्या कविता 
वह है जो 
ताली बजाने के लिए उत्साहित करती है   
या  
वह है 
जो लोगों के आँखों से 
मोती बन टपकती है. 


एक दिन 
कविता चिल्लाई 
मुझे बचाओ 
बाज़ार से नहीं 
उनसे जो मुझे लिखते-पढ़ते हैं. 

5
कवि कौन है ?
वह 
जो लिखता है 
या वह 
जो लिखा हुआ पढ़ता है 
या फिर वह 
जिस पर लिखा जाता है. 


कविता 
दुनिया का भूमंडलीकरण नहीं करती  
बल्कि 
गाँवों का भूमंडलीकरण करती है. 

7

एक 
मैं हूँ जो 
कविता को ढोता हूँ 
एक वो हैं 
जो कविता को पढ़ते हैं 
मेरी पहचान एक श्रमिक की है 
और उनकी 
शहर के मशहूर कवि की. 

6 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

तुम फेसबुक की कविता हो
मैं खेत-खलिहान की कविता हूँ
लोग तुम्हें पसंद करते हैं
और
गाँव के लोग मुझे जीते हैं
अपनी ज़िन्दगी के रगों में.

यह बहुत खास है सर!


सादर

रमेश यादव said...

यशवंत जी,
बहुत-बहुत शुक्रिया !

Unknown said...

bahut umda...........

रमेश यादव said...

वीरेश जी,शुक्रिया !

Kulwant Happy said...

बेहतरीन रचना। उम्‍दा ख्‍याल।

kundan said...

bahut hi saral aur satik likha hai sir apne, bahut achha laga read karke